विजय ‘विभोर’ की कहानियों में सामाजिक सरोकार
Keywords:
साहित्य मूलतः एक सामाजिक वस्तु है। व्यक्ति समाज की एक इकाई है।Abstract
साहित्य मूलतः एक सामाजिक वस्तु है। व्यक्ति समाज की एक इकाई है। व्यक्ति और उसके परिवेश एवं युग की घटनाओं का साहित्य में चित्रित होना स्वाभाविक है। साहित्य और समाज का अन्योन्याश्रित संबंध स्वतः सिद्ध है। साहित्य बदलती दुनिया का मात्र दर्पण नहीं है वरन् वह शांति, प्रगति तथा परस्पर स्नेह-सौहार्द के लिए भी कटिबद्ध है। वह कोरा सुधारक तथा उपदेशक भी नहीं है अपितु व्यवस्था परिवर्तन के लिए भी तत्पर रहता है। साहित्यकार समाज का सर्वाधिक संवेदनशील प्राणी होता है। वह अपने युग की परिस्थितियों, परिवेश एवं आसपास के वातावरण से आंदोलित तथा प्रेरित होकर ही रचनाकर्म में प्रवृत्त होता है। अतः वह सामाजिक सुख-दुःख की अनुभूतियों को ही अपनी रचनाओं में उकेरता है।