गोविन्द मिश्र के उपन्यासों में ‘स्त्री विमर्ष'

Authors

  • हरिस्वरुप

Abstract

प्राचीन समय में नारी का अस्तित्व पुरुष के समक्ष अत्यंत गौण था। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले की स्थिति हो या बाद की नारी का लगातार शोषण होता रहा है कभी माँ के रूप में कभी पत्नी कभी बेटी तो कभी प्रेमिका के रूप में। पुरुषों की एकाधिकार सत्ता के कारण महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी। उसे मात्र उपभोग की वस्तु समझा जाता था। उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रहना पड़ता था। उनकीअपनी कोई स्वतंत्रता नहीं जिसके चलते वे कोई निर्णय ले सकें न उनको कोई अधिकार प्राप्त थे। वे पूर्ण रूप से पुरुषों पर आश्रित थी वे जैसा चाहे वैसा व्यवहार स्त्रियों से कर सकते थे और स्त्री को उनके द्वारा किए जाने वाले सभी अत्याचारों को सहन करना पड़ता था। गोविन्द मिश्र जी के उपन्यासों में नारी की पीड़ा तथा अपनी अस्मिता की खोज के लिए उसका निरंतर संघर्ष का वास्तविक रूप हमें देखने को मिलता है।

Published

2023-08-30

How to Cite

हरिस्वरुप. (2023). गोविन्द मिश्र के उपन्यासों में ‘स्त्री विमर्ष’. International Journal of New Media Studies: International Peer Reviewed Scholarly Indexed Journal, 10(2), 141–146. Retrieved from https://ijnms.com/index.php/ijnms/article/view/194