जायसी के महाकाव्य ‘पद्मावत’ के खंडों का संक्षिप्त विश्लेषण
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पद्मावतAbstract
सूफी कवि परम्परा के सर्वाधिक परिपक्व कवि ये ही थे। भगवान् ने इनके बाह्म रूप के निर्माण में जितनी उपेक्षा दिखलाई उतनी ही आन्तरिक रूप-निर्माण में कला का परिचय दिया। जन्म समय अनिष्चित है, पर मृत्यु तिथि 1542 ई. बताई जाती है। इन्होंने अपने दो गुरूओं का उल्लेख किया है- सैयद अषरफ एवं षेख मुहीउद्दीन। इनकी रचनाएँ तीन हैं- पद्मावत, अखरावट एवे आखिरी कलाम। इनके यषः प्रसाद का स्तंभ ‘पद्मावत’ ही है। इसमें इतिहास के साथ कल्पना का मंजूल समन्वय है। कहानी का पूर्वार्द्ध कल्पित एवं उतरार्द्ध ऐतिहासिक है। पद्मावत् में कथा का आधार चितौड़ की महारानी पद्मिनी या पद्मावती है। भारतीय प्रबंध काव्य आदर्ष परिणामों द्वारा सत् एवं असत् की षिक्षा देता है, पर ‘पद्मावत’ के कथानक का लक्ष्य घटनाओं को आदर्ष परिणाम पर पहुँवरले कर नहीं है।
प्रबंध काव्य मानव जीवन का एक पूर्ण चित्र है। उसमें घटनाओं की सश्रृंखल कड़ी तो है ही, रसमयता का होना भी नितांत आवष्यक है। अर्थात् किसी प्रबध की परीक्षा के लिए उसे दो भागों में बांट लेना चाहिए- इतिवृत्तात्मक एवं रसात्मक। पहला अंष जिज्ञासा को और दूसरा रिसिसा को तुष्ट करता है। इतिवृत की दृष्टि से देखें, तो रत्नसेन एवं पद्मवती की आधिकारिक कथा के साथ तोता-क्रेता - ब्राह्मण-वृतांत राघव चेतन का हाल आदि प्रांसगिक कथाएँ भी है, जो परस्पर प्रबंध के ‘कार्य’- पद्मावती का सती होना से प्रमुख रूप से सम्बन्ध है। इस महाकाव्य को 57 खंडों में बाँटा गया है जो क्रमबद्ध तरीके से समावेषित है।